इंदौर. हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक व्यक्ति पर एफआईआर दर्ज करने, फिर उसे जिलाबदर करने के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि जिस जिले के कलेक्टर, एसपी माॅब लिंचिंग जैसी घटनाएं रोकने में असमर्थ रहे, वह गरीब लोगों पर एफआईआर कर उन्हें जिलाबदर कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने जिलाबदर की कार्रवाई रद्द करते हुए एफआईआर भी खारिज कर दी। इतना ही नहीं, सरकार पर 10 हजार रुपए की काॅस्ट भी लगा दी। घटना 2018 की है। धार जिले के पीथमपुर स्थित प्रतिभा सिंटेक्स के मजदूर अपनी मांगों को लेकर मिल के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। मजदूरों की यूनियन के लीडर मुन्नालाल साहनी के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया। फिर उन्हें जिलाबदर करने का प्रस्ताव भेज दिया।
कलेक्टर ने भी मुन्नालाल को जिलाबदर घोषित कर दिया। इस कार्रवाई के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में उल्लेख किया गया कि सैकड़ों मजदूरों के हक के लिए शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया जा रहा था। वहां किसी तरह की हिंसा नहीं हो रही थी।
इसके बावजूद पुलिस ने एफआईआर तो की ही, जिलाबदर के लिए भी लिख दिया। सरकार ने अपने जवाब में कहा कि पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई बिलकुल सही है। मजदूरों को गुमराह किया जा रहा था। हाई कोर्ट ने दोनों पक्ष सुनने के बाद जिलाबदर की कार्रवाई को गलत ठहराया और सरकार पर काॅस्ट भी लगाई।